मधुबनी: झंझारपुर के सिमरा में जन सुराज के सूत्रधार प्रशांत किशोर ने पदयात्रा के दौरान जनता को संबोधित किया। जनता से बातचीत के दौरान किसानों को होने वाले समस्याओं के बारे में बताते हुऐ उन्होंने कहा की बोलचाल की भाषा में लोग जो बता रहे हैं, उसके आधार पर खेती करने वाले लोगों की हालत बिहार में यह है की आज से 10 साल पहले खेती करने वाले लोग अपना पेट काटकर सत्तू खाकर 5 वर्ष अगर खेती करते थे तो ऐसी मनसा रखते थे की चार-पांच कट्ठा जमीन वह खरीदेंगे। आज स्थिति यह है खेती करने वाले लोगों के घर में अगर कोई बिजनेस, व्यापार या नौकरी करने वाला नहीं है और घर में बेटी की शादी लग जाए या कोई बीमार पड़ जाए तो हर 5 वर्ष में जमीन बेचना पड़ता है।
प्रशांत किशोर -बिहार देश का मात्र एक ऐसा राज्य जहां पिछले 10 वर्षों में सिंचित भूमि की मात्रा कम हुई है
आगे उन्होंने कहा की कोई ऐसा प्रखंड नहीं है जहां जमीन जल जमाव के कारण बर्बाद नही है, जिसे लोकल भाषा में चावर कहते हैं। हजारों एकड़ जमीन में या तो एक फसल हो रहा है या एक भी नहीं हो रहा है। जितनी बड़ी समस्या बाढ़ की है करीब-करीब उतनी ही बड़ी समस्या जल जमाव की भी है। किसानों से जुड़े एक और समस्या के बारे में बताते हुए प्रशांत किशोर ने सिंचाई के संबंध में कहा की बिहार देश का मात्र एक ऐसा राज्य है जहां पिछले 10 वर्षों में सिंचित भूमि की मात्रा कम हुई है 11%। पहले से जो नहर बने हुए थे, नलकूप चल रहे थे वह रखरखाव के अभाव में बंद हो गया या वहां से सिंचाई बंद हो गई।
प्रशांत किशोर ने किसानों को उनके फसल का दाम नहीं मिलने के पीछे के चार कारण को स्पष्ट किया
बिहार के किसानों की एक और बड़ी समस्या के बारे में बताते हुए प्रशांत किशोर ने कहा की जमीन और जल प्रबंधन के बावजूद जो किसान यहां फसल पैदा कर रहे हैं उसका उचित मूल्य नहीं मिल रहा है। एक आर्थिक सर्वेक्षण के हिसाब से बिहार में जो फसल किसान पैदा करता है उसका अगर उचित मूल्य मिल जाए तो हर वर्ष बिहार के किसानों को 20 हज़ार करोड़ रूपया अलग से मिलने लगेगा। किसानों के इस नुकसान का कारण बताते हुऐ उन्होनें कहा की यहां टैक्स की व्यवस्था पूरी तरीके से खत्म है, कोऑपरेटिव नही है, नई व्यवस्था FPO बिहार में ट्राई नहीं किया गया और प्राइवेट सेक्टर का जो कृषि आधारित उद्योग है वह बिहार में है नहीं। यही चार कारण है कि यहां पर किसानों को उनके फसल का दम नहीं मिल रहा।