बता दें कि शहर के बीचोंबीच यह बस स्टैंड स्थित है। जिले के जयनगर बस स्टैंड से प्रतिदिन करीब 50 बसें विभिन्न जगहों के लिए चलती हैं, और अमूमन 2 से 3 हजार लोग हर रोज इन बसों में सफर कर अपने गंतव्य स्थान को जाते हैं। इसके बावजूद यहां साफ-सफाई तो दूर शुद्ध पेयजल की व्यवस्था तक नहीं है। वहीं हल्की बारिश हो जाने के बाद तो स्थिति नारकीय हो जाती है।
शहर के बाहरी हिस्से में शिफ्ट किए जाने की थी योजना:
जयनगर बस स्टैंड को शहर से दूर डी.बी. कॉलेज के समीप पेट्रोल पंप के पास शिफ्ट किए जाने की योजना थी, लेकिन टेक्निकल कारणों एवं प्रशाशनिक उदासीनता जाने के बाद योजना ठंडे बस्ते में चली गई।
बता दें कि इससे पूर्व जो फाइल तैयार की गई थी, उसमें करीब कई एकड़ जमीन में बस स्टैंड को आधुनिक तरीके सुसज्जित करने की योजना थी। वर्तमान स्थिति बदहाल है, और लाखों का राजस्व देने वाले बस स्टैंड में यात्रियों के लिए पेयजल तक की समुचित व्यवस्था नहीं है।
बता दें कि बस स्टैंड के जीर्णोद्धार का मामला पिछले कई वर्षों से अटका है।
पड़ोसी देश नेपाल एवं अन्य राज्यों को जोड़ता है जयनगर:
जयनगर से विभिन्न राज्यों व पड़ोसी देश नेपाल की यात्रा के लिए सड़कें आपस में मिलती हैं। पहर दिन 50 बसें विभिन्न राज्यों के लिए जयनगर से होकर चलती हैं, और अमूमन 2 से 3 हजार लोग हर रोज इन बसों में सफर कर अपने गंतव्य स्थान को जाते हैं। राज्य के बड़े बस अड्डों में शुमार जयनगर का बस अड्डा आज भी किसी खेवनहार की बाट जोहता नजर आ रहा है। इस जिले से दो नेशनल हाइवे (एनएच 104 व 105) गुजरता है।
बता दें कि शहर की आबादी करीब पचास हजार है, और आसपास के गाँव एवं जगहों से रोज इतने ही यात्री सफर करते हैं।
परिवहन विभाग के आंकड़ों की मानें तो इतने वाहनों हैं, इसके बाद भी डिजिटल ट्रैफिक लाइट सिस्टम की व्यवस्था नहीं की गई है।
जिले का जयनगर बस स्टैंड सरकार के विकास के दावों को मुंह चिढ़ाती हैं। इस बस पड़ाव में यात्रियों के लिए मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं। वहीं, कर्मचारी भी बरसात, धूप, ठंड में जान हथेली पर रखकर काम करते हैं।
दरअसल, बिहार राज्य पथ परिवहन निगम का जिला स्तरीय बस स्टैंड सरकार को हर माह लाखों का राजस्व देता है, लेकिन सरकार उस राजस्व का 1% भी यात्रियों की सुविधाओं और कर्मचारियों के हित में खर्च नहीं करती है। हालात यह है कि बस स्टैंड के नाम पर एक भवन तक है, और झील में तब्दील बस पड़ाव है। यहां एक यात्री शेड भी नहीं है, वहां बरसात में खड़ा होना भी मुश्किल है। यात्री शेड में ही नहीं है।
अगर इसके सबसे आवश्यक मूलभूत सुविधाएं की बात करें, तो बस स्टैंड पर पुरुष और महिलाओं के लिए शौचालय तक नहीं है। लेकिन गंदगी भी इतनी है की जानवर भी यहाँ आने से कतराए। पेयजल की सुविधा के लिए एक भी बोरिंग नहीं है। कर्मचारी हो या यात्री दोनों को बोतलबंद पानी पीना पड़ता है, या साथ लेके आया हुआ वाणी नसीब होता है। कर्मचारियों को भी जान हथेली पर रखकर काम करना पड़ता है। बरसात के दिनों में बारिश से बचाने के लिए फाइल को प्लास्टिक से ढंका जाता है।