•प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी व कार्यक्रम में सहयोग दे रहे फाइलेरिया कर्मी, बीएचआइ एवं बीएचडब्लू का हुआ उन्मुखीकरण
•डब्ल्यूएचओ के सहयोग से कोविड केयर सेंटर में हुआ प्रशिक्षण
•जिले में फाइलेरिया के 595 मरीज चिन्हित
मधुबनी।
फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम को लेकर कोविड केयर सेंटर रामपट्टी में एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन किया गया कार्यशाला का आयोजन विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के सहयोग से किया गया। कार्यशाला के दौरान उपस्थित कर्मियों प्रखंड चिकित्सा पदाधिकारी व कार्यक्रम में सहयोग दे रहे फाइलेरिया कर्मी, बीएचआइ एवं बीएचडब्लू को फाइलेरिया मरीजों को उपचार संबंधी जानकारी दी गई। कार्यशाला का उद्घाटन बाबूबरही के चिकित्सा पदाधिकारी डॉ० शिव शंकर मेहता व हरलाखी के चिकित्सा पदाधिकारी, डॉ० कपिल ने संयुक्त रूप से किया। जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉक्टर विनोद कुमार झा ने बताया वर्तमान में मधुबनी में 595 फायलेरिया मरीज चिन्हित किया गया, जिन्हें लिम्फोडिमा और हाइड्रोसील की समस्या है। फाइलेरिया मरीजों की पहचान एवं उनका नाम सरकारी सूची में शामिल करने के लिए यथा संभव प्रयास किया जाएगा और जिले के प्रत्येक फाइलेरिया मरीज को ढूंढा जाएगा। इन्हीं मरीजों के उपचार के तरीके तथा उसकी बीमारी अधिक ना बढ़ने देने के लिए प्रशिक्षण का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण के दौरान जिले में फाइलेरिया की रोकथाम के लिए चल रहे फाइलेरिया उन्मूलन कार्यक्रम की समीक्षा भी की गई। विदित हो कि मधुबनी जिले में केंद्र सरकार के सहयोग से दो बार वर्ष 2016 और 2019 में टीएएस (ट्रांसमिशन एसेसमेंट सर्वे) का आयोजन किया गया, लेकिन दोनों बार मधुबनी जिला फेल हो गया यानी संक्रमण अभी भी चल रहा है। इस कारण प्रत्येक वर्ष सर्जन दवा सेवन कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है।
विश्व मे विकलांगता का दूसरा सबसे बड़ा कारण है फाइलेरिया: डॉ० दिलीप
डब्ल्यूएचओ के एन.टी.बी. के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ० दिलीप कुमार ने बताया फाइलेरिया एक कृमि के कारण होने वाला बीमारी है, जो मच्छर के काटने से फैलता है। इसलिए अपने घरों के आसपास साफ-सफाई रखना आवश्यक है, तथा वर्ष में एक बार सर्वजन दवा सेवन (एमडीए) कार्यक्रम के तहत फाइलेरिया से बचाव के लिए दवा खाना जरूरी है, जिसको फाइलेरिया हो गया है। उसको स्वउपचार करना अत्यंत जरूरी है, जिसका पैर, हाथ या अन्य कोई अंग फूल गया है, उन्हें लिम्फोडिमा कहते हैं। जबकि पुरुषों में हाइड्रोसील भी इस बीमारी का प्रमुख लक्षण है।
फाइलेरिया होने पर मरीजों में कई तरह की समस्याएं होती है उत्पन्न :
फाइलेरिया होने पर मरीजों के कई तरह की समस्याएं उत्पन्न होने लगती है। सिविल सर्जन डॉ० सुनील कुमार झा ने बताया लिम्फोडिमा को 7 स्टेज में बांटा गया है। शुरुआत में एक से दो स्टेज तक के मरीज को फिर से सामान्य अवस्था मे लाया जा सकता है, लेकिन स्टेज बढ़ जाने पर कभी भी ठीक नहीं हो सकता है। जैसे-जैसे स्टेज बढ़ते जाता है, यह बीमारी कष्टकर होते चले जाता है। मरीज शारीरिक बीमारी के साथ-साथ मानसिक रूप से बीमार होने लगता है, और डिप्रेशन का शिकार हो जाता है। परिवार समाज में दया का पात्र बनने लगता है। आर्थिक तंगी होने लगती है। महीना दो महीना में 5 से 7 दिनों के लिए तेज बुखार, विकलांग पैर में दर्द, पैर का लाल होकर फुल जाना आदि समस्याएं भी होती है। हाइड्रोसील वाले मरीजों में कई तरह की समस्याओं के अलावा यौन समस्याएं भी होती है।
इस अवसर पर एसीएमओ डॉ० आर.के. सिंह, जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ० विनोद कुमार झा, डब्ल्यूएचओ के एन.टी.बी. के क्षेत्रीय समन्वयक डॉ० दिलीप कुमार, वेक्टर रोग नियंत्रण पदाधिकारी राकेश रोशन,केयर इंडिया के डीपीओ धीरज कुमार सिंह, मलेरिया विभाग के लक्ष्मीकांत झा, सिफार के प्रमंडलीय कार्यक्रम समन्वयक अमन कुमार एवं पीसीआई के समन्वयक उपस्थित थे।