- येलो फीवर का टीका लगाने के लिए नहीं होगा किसी अनधिकृत टीकाकरण केंद्र का इस्तेमाल
- सचिव स्वास्थ्य-सह-कार्यपालक निदेशक, राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार ने पत्र जारी कर दिए निर्देश
येलो फीवर, जिसे आम भाषा में पीलिया और ज्योंडिस के नाम से भी जाना जाता है। येलो फीवर का कोई उपचार नहीं है। 9 माह के आयु में इसका टीका शिशु को लगाया जाता है, जिससे वह आगे चलकर इस रोग से सुरक्षित रह सके। येलो फीवर का टीका लगाने के लिए राज्य में सिर्फ अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एकमात्र प्राधिकृत केंद्र है।
उक्त प्राधिकृत केंद्र के अलावा पूर्वी चंपारण जिले में कुछ वर्ष पहले येलो फीवर का टीका लगाया गया था। इसे संज्ञान में रखते हुए सचिव स्वास्थ्य-सह-कार्यपालक निदेशक, राज्य स्वास्थ्य समिति, बिहार ने सिविल सर्जन को पत्र जारी कर जिले में येलो फीवर टीकाकरण से संबंधित अनधिकृत केंद्र का संचालन नहीं करने का निर्देश जारी किया है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एकमात्र प्राधिकृत केंद्र :
जारी पत्र में बताया गया है कि पटना स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एकमात्र ऐसा प्राधिकृत केंद्र है, जहाँ येलो फीवर का टीका लगाया जाता है. यह सुनिश्चित किया जाना है कि जिलान्तर्गत येलो फीवर टीकाकरण से संबंधित किसी भी टीकाकरण केंद्र का संचालन नहीं हो।
जानिये क्या है येलो फीवर :
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार येलो फीवर एक मच्छर जनित रोग है जो संक्रमित एडीज मच्छर के काटने से होते है। यह मच्छर दिन में मनुष्य को काटता है और संक्रमित करता है। येलो फीवर के लक्षण तत्काल दिखाई नहीं देते हैं। धीरे-धीरे संक्रमित व्यक्ति को अचानक बुखार आना, सर एवं पीठ में तेज दर्द, जी मचलाना अथवा उल्टी होना, थकावट का अहसास जैसे लक्षण दिखाई देते हैं। येलो फीवर के उपचार के लिए कोई दवा उपलब्ध नहीं है, लेकिन ग्रसित मरीज ज्यादा से ज्यादा आराम करे, पानी तथा तरल पदार्थों का सेवन करें। सर एवं पीठ के दर्द को कम करने के लिए मरीज चिकित्सक की सलाह पर पैन किलर दवा का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। येलो फीवर से सुरक्षा के लिए 9 माह अथवा इससे ऊपर के बच्चों को वाईएफ 17 डी वैक्सीन लगायी जाती है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पूरे विश्व में हर वर्ष 2 लाख से ज्यादा येलो फीवर के मरीज पाए जाते हैं। इस रोग से प्रतिवर्ष करीब 30 हजार लोग अपनी जान गँवा देते हैं।